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ख़ुदा से ज़ुल्म का शिकवा ज़रूर मैं ने किया

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ख़ुदा से ज़ुल्म का शिकवा ज़रूर मैं ने किया

बड़ा क़ुसूर ये ऐ रश्क-ए-हूर मैं ने किया

किसी से दिल का लगाना गुनाह है नासेह

जो ये क़ुसूर है तो ये क़ुसूर मैं ने किया

वो ज़िक्र-ए-वादा-ए-वस्ल-ए-अदू पे कहते हैं

ज़रूर मैं ने किया बिज़्ज़रुर मैं ने किया

तिरा ख़याल मिरे दिल में आ नहीं सकता

कि जिस को दूर किया उस को दूर मैं ने किया

जनाब-ए-'नूह' ज़माने का ए'तिबार नहीं

बुरा किया जो किसी से ग़ुरूर मैं ने किया

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Sootradhar