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अन्तिम प्रहर
है वही अन्तिम प्रहर
सोई हुई हैं हरकतें
इन खनखनाती बेड़ियों में लिपट कर
है वही अन्तिम प्रहर
है वही मेरे हृदय में एक चुप-सी
कान में आहट किसी की
थरथराती है
किसी भूले हुए की
मन्द स्मिति ख़ामोश स्मृति में
कौन था वह
जो अभी
अपनी कथा कह कर
हुआ रुख़सत
व्यथा थी वह
अभी तक
थरथराती है
समय की फाँक में ख़ामोश
ले रहे तारे विदा
नभ हो रहा काला
भोर से पहले
क्षितिज पर
काँपती है
एक झिलमिल आभ नीली
हो वहीं तुम
रात के अन्तिम प्रहर में
लिख रहे कुछ पंक्तियाँ
सिल पर समय की
टूटना है जिसे आख़िरकार
होते भोर
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