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अंदाज़ कुछ और नाज़-ओ-अदा और ही कुछ है

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अंदाज़ कुछ और नाज़-ओ-अदा और ही कुछ है

जो बात है वो नाम-ए-ख़ुदा और ही कुछ है

न बर्क़ न ख़ुर्शीद न शो'ला न भभूका

क्यूँ साहिबो ये हुस्न है या और ही कुछ है

बिल्लोर की चमकें हैं न अल्मास की झमकें

उस गोरे से सीने की सफ़ा और ही कुछ है

पीछे को नज़र की तो वो गुद्दी है क़यामत

आगे को जो देखा तो गिला और ही कुछ है

सीने पे कहा मैं ने ये दो सेब हैं क्या हैं

शर्मा के ये चुपके से कहा और ही कुछ है

तुम बातें हमें कहते हो और सुनते हैं हम चुप

अपनी भी ख़मोशी में सदा और ही कुछ है

हैं आप की बातें तो शकर-रेज़ पर ऐ जाँ

इस गूँगे के गुड़ में भी मज़ा और ही कुछ है

पूछी जो दवा हम ने तबीबों से तो बोले

बीमारी नहीं है ये बला और ही कुछ है

उन्नाब न ख़ुतमी न बनफ़शा न ख़ियारीन

इस ढब के मरीज़ों की दवा और ही कुछ है

हम को तो 'नज़ीर' उन से शिकायत है जफ़ा की

और उन का जो सुनिए तो गिला और ही कुछ है

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Sootradhar