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हिन्दी नहीं जाने उसे हिन्दी नहीं जानिये

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‘शंकर’ प्रतापी महामण्डल की पूजा करो,
भेद वेदव्यास के पुराणों में बखानिए।
बोध के विधाता मतवालों को बताते रहो,
आपस में भूलकै भिड़न्त की न ठानिए।
जूरी जाति-पांति की पटेल-बिल में न घुसे,
भिन्नता को एकता के सांधे में न सानिये।
हिन्दुओं के धर्म की है घोषणा घमण्ड-भरी,
हिन्दी नहीं जाने उसे हिन्दी नहीं जानिये।।

 

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Sootradhar