उषस 4's image
0131

उषस 4

ShareBookmarks


किरणमयी ! तुम स्वर्ण-वेश में
स्वर्ण-देश में !!
सिंचित है केसर के जल से
इन्द्रलोक की सीमा
आने दो सैन्धव घोड़ों का
रथ कुछ हल्के-धीमा,
पूषा के नभ के मन्दिर में
वरुणदेव को नींद आ रही
आज अलकनन्दा
किरणों की वंशी का संगीत गा रही
अभी निशा का छन्द शेष है अलसाये नभ के प्रदेश में !!

विजन घाटियों में अब भी
तम सोया होगा फैला कर पर
तृषित कण्ठ ले मेघों के शिशु
उतरे आज विपाशा-तट पर

शुक्र-लोक के नीचे ही
मेरी धरती का गगन-लोक है
पृथिवी की सीता-बाँहों में
फसलों का संगीत लोक है
नभ-गंगा की छाँह, ओस का उत्सव रचती दूब देश में !!

नभ से उतरो कल्याणी किरनो !
गिरि, वन-उपवन में
कंचन से भर दो बाली-मुख
रस, ऋतु मानव-मन में
सदा तुम्हारा कंचन-रथ यह
ऋतुओं के संग आये
अनागता ! यह क्षितिज हमारा
भिनसारा नित गाये
रैन-डूँगरी उतर गये सप्तर्षी अपने वरुण-देश में !!

Read More! Learn More!

Sootradhar