
अभिअंतर नहीं भाव, नाम कहै हरि नांव सूं ।
नीर बिहूणी नांव, कैसे तिरिबौ केसवे ॥१॥
अभि अंतरि काला रहै, बाहरि करै उजास ।
नांम कहै हरि भजन बिन, निहचै नरक निवास ॥२॥
अभि अंतरि राता रहै, बाहरि रहै उदास ।
नांम कहै मैं पाइयौ, भाव भगति बिसवास ॥३॥
बालापन तैं हरि भज्यौं, जग तैं रहे निरास ।
नांमदेव चंदन भया सीतल सबद निवास ॥४॥
पै पायौ देवल फिरयौ, भगति न आई तोहि ।
साधन की सेवा करीहौ नामदेव, जौ मिलियौ चाहे मोहि ॥५॥
जेता अंतर भगत सूं तेता हरि सूं होइ ।
नाम कहै ता दास की मुक्ति कहां तैं होइ ॥६॥
ढिग ढिग ढूंढै अंध ज्यूं, चीन्है नाहीं संत ।
नांम कहै क्यूं पाईये, बिन भगता भगवंत ॥७॥
बिन चीन्हया नहीं पाईयो, कपट सरै नहीं काम ।
नांम कहै निति पाईये, रांम जनां तैं राम ॥८॥
नांम कहै रे प्रानीयां, नीदंन कूं कछू नांहि ।
कौन भांति हरि सेईये, रांम सबन ही मांहि ॥९॥
समझ्या घटकूं यूं बणै, इहु तौ बात अगाधि ।
सबहनि सूं निरबैरता, पूजन कूं ऐ साध ॥१०॥
साह सिहाणौ जीव मैं, तुला चहोडो प्यंड ।
नाम कहै हरि नाम समि, तुलै न सब ब्रह्मंड ॥११॥
तन तौल्या तौ क्या भया, मन तोल्या नहि जाइ ।
सांच बिना सीझसि नहीं, नाम कहै समझाइ ॥१२॥
दान पुनि पासंग तुलै, अहंडै सब आचार ।
नाम कहै हरि नाम समि, तुलै न जग ब्यौहार ॥१३॥