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साबित रहा फ़लक मिरे नालों के सामने

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साबित रहा फ़लक मिरे नालों के सामने

ठहरी सिपर हबाब के भालों के सामने

मूसा हैं ग़श में गेसुओं वालों के सामने

गुल है चराग़-ए-तूर भी कालों के सामने

फूलों का रंग ज़र्द है गालों के सामने

सुम्बुल में बल नहीं तिरे बालों के सामने

रखवाए झाड़ उस ने निहालों के सामने

क़लमें लगीं बिलोर की डालों के सामने

जाता हूँ जब ख़िज़ाँ में निहालों के सामने

आँखों से नहरें बहती हैं थालों के सामने

फूले शफ़क़ तो ज़र्द हो गालों के सामने

पानी भरे घटा तिरे बालों के सामने

तारे हुए ग़ुरूब ख़त-ओ-ख़ाल देख कर

गोरों के पाँव उठ गए गालों के सामने

आँखों में फिरते हैं नहीं आते हैं रू-ब-रू

पर्दे पड़े हैं देखने वालों के सामने

देखा है आशिक़ों ने बरहमन की आँख से

हर बुत ख़ुदा है चाहने वालों के सामने

छुट जाएँगे असीर छुपा ज़ुल्फ़-ए-ख़म नजम

कटती हैं बेड़ियाँ तिरे बालों के सामने

बेताब दस्त-ए-शौक़ हैं जोबन के रू-ब-रू

बोसे में जाँ ब-लब तिरे गालों के सामने

इफ़रात-ए-मय से मुझ को ये जोश-ए-सुरूर है

बजवाऊँ जल-तरंग में प्यालों के सामने

जिल्द-ए-बदन है तख़्ता-ए-मश्क़-ए-सिपाह-ए-ग़म

रहती है ये किताब रिसालों के सामने

आँखें तुम्हारी देख के कुछ सूझता नहीं

भूला हूँ चौकड़ी मैं ग़ज़ालों के सामने

दरवाज़ों पर बुतों के लगाया किए अलाव

होली जलाई हम ने शिवालों के सामने

ज़ुल्फ़ों में देखता हूँ तिरा चेहरा-ए-सबीह

लबरेज़ जाम-ए-शीर है कालों के सामने

तेरे गदा से बंद है आलम का नातिक़ा

आते नहीं जवाब सवालों के सामने

खींचे बुतों ने अपनी तरफ़ ज़ाहिदों के दिल

क़िबला-नुमा फिरे हैं शिवालों के सामने

चोरी से बोसा-ए-कफ़-ए-पा लें जो परी

होंट अपने चूम लूँ तिरे गालों के सामने

पहुँचा फ़लक को फ़क़्र का रुत्बा हुज़ूर-ए-ऐश

कम्बल चढ़े हैं चर्ख़-ए-दो-शालों के सामने

अहल-ए-किताब हैं सफ़-ए-मिज़्गाँ के रू-ब-रू

काग़ज़ के दस्ते आए रिसालों के सामने

फ़य्याज़ साइलों से नहीं करते सर-कशी

शीशों के सर झुके हैं प्यालों के सामने

दस्त-ए-जफ़ा उठाएँगे क्या जिस्म-ए-ज़ार पर

काँटा हों तेग़-ए-नाज़ के छालों के सामने

शीशे को हुस्न-ए-गर्म ने पारा बना दिया

आईने उड़ गए तिरे गालों के सामने

तेग़-ए-निगह को मोतियों की डाब चाहिए

आईना रख के देखिए छालों के सामने

जलते रहे बुतों की हुज़ूरी में शम्अ'-रू

परियाँ सती हुई हैं शिवालों के सामने

हम-चश्मों पर लगाई हैं उस बुत ने गोलियाँ

तोड़े हुए हैं शेर ग़ज़ालों के सामने

जादा बुनत बना मिरी वहशत के फ़ैज़ से

गोटे के गो कोहर हुए छालों के सामने

मेरे हुनर का कोई नहीं क़द्र-दाँ 'मुनीर'

शर्मिंदा हूँ मैं अपने कमालों के सामने

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Sootradhar