टहनी पे किसी शजर की तन्हा's image
0435

टहनी पे किसी शजर की तन्हा

ShareBookmarks

टहनी पे किसी शजर की तन्हा

बुलबुल था कोई उदास बैठा

कहता था कि रात सर पे आई

उड़ने चुगने में दिन गुज़ारा

पहुँचूँ किस तरह आशियाँ तक

हर चीज़ पे छा गया अँधेरा

सुन कर बुलबुल की आह-ओ-ज़ारी

जुगनू कोई पास ही से बोला

हाज़िर हूँ मदद को जान-ओ-दिल से

कीड़ा हूँ अगरचे मैं ज़रा सा

क्या ग़म है जो रात है अँधेरी

मैं राह में रौशनी करूँगा

अल्लाह ने दी है मुझ को मशअल

चमका के मुझे दिया बनाया

हैं लोग वही जहाँ में अच्छे

आते हैं जो काम दूसरों के

Read More! Learn More!

Sootradhar