
ख़ुदा तुझे किसी तूफ़ाँ से आश्ना कर दे
कि तेरे बहर की मौजों में इज़्तिराब नहीं
तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू
किताब-ख़्वाँ है मगर साहिब-ए-किताब नहीं
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ख़ुदा तुझे किसी तूफ़ाँ से आश्ना कर दे
कि तेरे बहर की मौजों में इज़्तिराब नहीं
तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू
किताब-ख़्वाँ है मगर साहिब-ए-किताब नहीं