काले रंग को पहचानना असंभव होता है
सब ओर जब अंधकार हो
पर अगर देख सकते हैं हम
और कहते उसे स्याह
कैसा है सोचकर
तो कोई स्रोत तो होगा ही उसे देखने के लिए
वे आँख नहीं
वह मन नहीं
फिर क्या
जो कर दे अपनी पुष्टि
कैसे करूँ प्रमाणित कि सहमति हो जाय हमारे बीच
अपने अपने अंधेरे पर
भाषा ने परिभाषित कर
सीमित कर दिया अनुभूति को
गर्भ से बाहर
हम अंधेरा देख सकते हैं
या रोशनी की जरूरत भ्रम है!
या बस जन्मजात आदत है
कुछ देखने के लिए कि
कुछ लिख दूँ अंधेरे में
स्याही से
जो पढ़ा जा सके रोशनी की दुनिया में
Read More! Learn More!