अपने दुखों के स्नायु तंतुओं को जोड़
मैं भरता पींग छूने मन की डालों के ओर छोर
जो आश्वस्त कर सके कि
बीत जाएगा यह भी
विचलित धड़कनों में बल खाता दोपहर का अंतराल
दुनिया के हर कोने जा लिख आए वहाँ तुम
पर इस बार मैंने लिखा
मैं यहाँ आया था निराखर अहेरी
खोये आकाश के दुपहरी साये
उठाए झोला भर जीवन टूटे शब्दों का,
लाल पत्थर के स्ट्रासबर्ग कथीडरल की दीवार पर
गोया कभी पढऩे यह आश्चर्य
आएगा संदीपन यहाँ
मिट चुके लिखे भविष्य को फिर लिखने!
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