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स्मृति 2

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वह एक दृश्य था जिसमें एक पुराना घर था
जो बहुत से मनुष्यों के साँस लेने से बना था
उस दृश्य में फूल खिलते तारे चमकते पानी बहता
और समय किसी पहाड़ी चोटी से धूप की तरह
एक-एक क़दम उतरता हुआ दिखाई देता
अब वहाँ वह दृश्य नहीं है बल्कि उसका एक खण्डहर है
तुम लम्बे समय से वहाँ लौटना चाहते रहे हो जहाँ उस दृश्य का खण्डहर न हो
लेकिन अच्छी तरह जानते हो कि यह संभव नहीं है
और हर लौटना सिर्फ़ एक उजड़ी हुई जगह में जाना है
एक अवशेष, एक अतीत और एक इतिहास में
एक दृश्य के अनस्तित्व में

इसलिए तुम पीछे नहीं बल्कि आगे जाते हो
अन्धेरे में किसी कल्पित उजाले के सहारे रास्ता टटोलते हुए
किसी दूसरी जगह और किसी दूसरे समय की ओर
स्मृति ही दूसरा समय है जहाँ सहसा तुम्हें दिख जाता है
वह दृश्य उसका घर जहाँ लोगों की साँसें भरी हुई होती हैं
और फूल खिलते हैं तारे चमकते है पानी बहता है
और धूप एक चोटी से उतरती हुई दिखती है।

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Sootradhar