ना वह रीझै जप तप कीन्हे's image
0252

ना वह रीझै जप तप कीन्हे

ShareBookmarks

ना वह रीझै जप तप कीन्हे, ना आतमका जारे।
ना वह रीझै धोती टाँगे, ना कायाके पखाँरे॥
दाया करै धरम मन राखै, घरमें रहे उदासी।
अपना-सा दुख सबका जानै, ताहि मिलै अबिनासी॥
सहै कुसब्द बादहूँ त्यागै, छाँड़े, गरब गुमाना।
यही रीझ मेरे निरंकारकी, कहत मलूक दिवाना॥

 

Read More! Learn More!

Sootradhar