हरि समान दाता कोउ नाहीं's image
0229

हरि समान दाता कोउ नाहीं

ShareBookmarks

हरि समान दाता कोउ नाहीं। सदा बिराजैं संतनमाहीं॥१॥
नाम बिसंभर बिस्व जिआवैं। साँझ बिहान रिजिक पहुँचावैं॥२॥
देइ अनेकन मुखपर ऐने। औगुन करै सोगुन करि मानैं॥३॥
काहू भाँति अजार न देई। जाही को अपना कर लेई॥४॥
घरी घरी देता दीदार। जन अपनेका खिजमतगार॥५॥
तीन लोक जाके औसाफ। जनका गुनह करै सब माफ॥६॥
गरुवा ठाकुर है रघुराई। कहैं मूलक क्या करूँ बड़ाई॥७॥

Read More! Learn More!

Sootradhar