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दया धरम हिरदे बसै

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दया धरम हिरदे बसै, बोलै अमरित बैन।

तेई ऊँचे जानिये, जिनके नीचे नैन॥

आदर मान, महत्व, सत, बालापन को नेहु।

यह चारों तबहीं गए जबहिं कहा कछु देहु॥

इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।

बात कहत ढर जात है, बालू की सी भीत॥

अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।

दास 'मलूका कह गए, सबके दाता राम॥

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