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नामा-बर आते रहे जाते रहे

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नामा-बर आते रहे जाते रहे

हिज्र में यूँ दिल को बहलाते रहे

ये भी क्या कम है कि मेरे हाल पर

देर तक वो ग़ौर फ़रमाते रहे

शिद्दत-ए-एहसास-ए-तन्हाई न पूछ

हम भरी महफ़िल में घबराते रहे

हिज्र की तारीकियाँ बढ़ती गईं

महर ओ मह आते रहे जाते रहे

कोई क्या जानेगा ये राज़-ओ-नियाज़

दिल हमें हम दिल को समझाते रहे

मंज़िल-ए-मक़्सूद पर पहुँचे वही

राह में जो ठोकरें खाते रहे

नश्शा-ए-मय तेज़-तर होता गया

शैख़ साहब वाज़ फ़रमाते रहे

क्या अजब शय है मता-ए-दिल 'सहर'

जो उसे खोते रहे पाते रहे

 

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Sootradhar