ख़ुशी याद आई कि ग़म याद आए
मगर तुम हमें दम-ब-दम याद आए
जो तुम याद आए तो ग़म याद आए
जो ग़म याद आए तो हम याद आए
छिड़ा ज़िक्र जब उन के जौर-ओ-सितम का
मुझे उन के लाखों करम याद आए
मोहब्बत में इक वक़्त ऐसा भी गुज़रा
न तुम याद आए न हम याद आए
फ़लक पर जो देखे मह-ओ-मेहर-ओ-अंजुम
हमें अपने नक़्श-ए-क़दम याद आए
मुक़द्दर को जब भी सँवारा है हम ने
तिरी ज़ुल्फ़ के पेच-ओ-ख़म याद आए
अजब कश्मकश है कि जीना न मरना
'सहर' उस से कह दो कि कम याद आए
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