करो जो चाहो हम से पूछना क्या
हमारी आरज़ू क्या मुद्दआ' क्या
समझ का फेर है अच्छा बुरा सब
जो सच पूछो तो अच्छा क्या बुरा क्या
करें सज्दा फ़क़त हम बहर-सज्दा
नहीं मंज़ूर बंदा क्या ख़ुदा क्या
जिसे मिल जाए तेरे ग़म की दौलत
ग़म-ए-दुनिया से उस को वास्ता क्या
अइ'ज़्जा क्यूँ सर-ए-बालीं हैं ख़ामोश
मरीज़-ए-ग़म अभी से सो गया क्या
मरे जाते हैं हम ख़ौफ़-ए-फ़ना से
न हो मरना तो जीने में बुरा क्या
न जाने आज क्यूँ बिगड़े हुए हो
किसी ने कान में कुछ कह दिया क्या
न जीना हाथ में अपने न मरना
बशर की इब्तिदा क्या इंतिहा क्या
सितम देखो मुझी से पूछते हैं
नसीब-ए-दुश्मनाँ कुछ हो गया क्या
हमारा काम है घुट घुट के मरना
वही जाने जफ़ा क्या है वफ़ा क्या
सर-ए-मिंबर कोई जा कर तो देखे
अभी तक है दर-ए-मय-ख़ाना वा क्या
वो वक़्त-ए-सुब्ह रुख़्सत हो रहे हैं
यही है शाम-ए-ग़म की इब्तिदा क्या
बुत-ए-काफ़िर से उल्फ़त है 'सहर' को
वही जाने कि बुत क्या है ख़ुदा क्या