इन शोख़ हसीनों की निराली है अदा भी's image
0297

इन शोख़ हसीनों की निराली है अदा भी

ShareBookmarks

इन शोख़ हसीनों की निराली है अदा भी

बुत हो के समझते हैं कि जैसे हैं ख़ुदा भी

घबरा के उठी है मिरी बालीं से क़ज़ा भी

जाँ-बख़्श है कितनी तिरे दामन की हवा भी

यूँ देख रहे हैं मिरी जानिब वो सर-ए-बज़्म

जैसे कि किसी बात पे ख़ुश भी हैं ख़फ़ा भी

मायूस-ए-मोहब्बत है तो कर और मोहब्बत

कहते हैं जिसे इश्क़ मरज़ भी है दवा भी

तुझ पर ही 'सहर' है कि तू किस हाल में काटे

जीना तो हक़ीक़त में सज़ा भी है जज़ा भी

Read More! Learn More!

Sootradhar