
फिर पुराने नीम के नीचे खड़ा हूँ
फिर पिता कि याद आई है मुझे
नीम सी यादें सहज मन में समेटे,
चारपायी डाल आँगन बीच लेटे,
सोचे हैं हित सदा उन के घरों का,
दूर हैं जो एक बेटी, चार बेटे
फिर कोई रख हाथ काँधे पर,
कहीं यह पूछता है,
"क्यूँ अकेला हूँ भरी इस भीड़ में ?"
मैं रो पड़ा हूँ
फिर पिता कि याद आई है मुझे
फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ
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