आगमनी's image
0243

आगमनी

ShareBookmarks


यह अरुण पीताभ उज्ज्वल अवतरण
रथ और जयजयकार
मन का पानी चमक उठा
डबने उतराने लगे, लघुबाल शतदल।

तुम्हारी यह धनुषटंकार
तुम्हारे रोष के ये पुष्प
स्नेह के ज्यों वाण बरसे
ढॅंक रहे मुझको सहस्रों फन पसार।

कल जब नभ से धरा तक
तुम्हारा प्राण पिघलेगा
तब फूल कांटे में उगेगा
नील धूसर वेधता वह शुक उड़ेगा
जिसका पंख दानव काट डाला था।

Read More! Learn More!

Sootradhar