
मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो।
ललित त्रिभंग चाल पै चलि कै, चिबुक चारु गडि ठठक्यो॥
सजल स्याम घन बरन लीन ह्वै, फिर चित अनत न भटक्यो।
'कृष्णदास किए प्रान निछावर, यह तन जग सिर पटक्यो॥
Read More! Learn More!
मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो।
ललित त्रिभंग चाल पै चलि कै, चिबुक चारु गडि ठठक्यो॥
सजल स्याम घन बरन लीन ह्वै, फिर चित अनत न भटक्यो।
'कृष्णदास किए प्रान निछावर, यह तन जग सिर पटक्यो॥