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लीला लाल गोवर्धनधर की

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लीला लाल गोवर्धनधर की।
गावत सुनत अधिक रुचि उपजत रसिक कुंवर श्री राधावर की॥१॥
सात द्योस गिरिवर कर धार्यो मेटी तृषा पुरंदरदर की।
वृजजन मुदित प्रताप चरण तें खेलत हँसत निशंक निडर की॥२॥
गावत शुक शारद मुनि नारद रटत उमापति बल बल कर की।
कृष्णदास द्वारे दुलरावत मांगत जूठन नंदजू के घर की॥३॥

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