जैसे हर किसी को रोज का खाना चाहिए
नारी को चाहिए अपना अधिकार
कलाकार को चाहिए रंग और अपनी तूलिका
उसी तरह
हमारे समय के संकट को चाहिए
एक विचार धारा
और एक अह्वान:-
अंतहीन संघर्षों, अनंत उत्तेजनाओं,
सपनों में बंधे
मत ढलो यथास्थिति के अनुसार
मोड़ो दुनिया को अपनी ओर
समा लो अपने भीतर
समस्त ज्ञान
घुटनों के बल मत रेंगों
उठो-
गीत, कला और सच्चाइयों की
तमाम गहराइयों की थाह लो
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