
धड़कता जाता है दिल मुस्कुराने वालों का
उठा नहीं है अभी ऐतबार नालों का
ये मुख़्तसर सी है रूदाद-ए-सुब्ह-ए-मैं-ख़ाना
ज़मीं पे ढेर था टूटे हुए पियालों का
ये खौफ है के सबा लड़खड़ा के गिर ने पड़े
पयाम ले के चली है शिकस्ता-हालों का
न आएँ अहल-ए-खिरद वादी-ए-जुनूँ की तरफ
यहाँ गुज़र नहीं दामन बचाने वालों का
लिपट लिपट के गले मिल रहे थे खंज़र से
बड़े गज़ब का कलेजा था मरने वालों का
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