
सुनता नहीं धुन की ख़बर, अनहद का बाजा बाजता।
रस मंद मंदिर बाजता, बाहर सुने तो क्या हुआ।
इक प्रेम-रस चाखा नहीं, अमली हुआ तो क्या हुआ॥
क़ाज़ी किताबें खोजता, करता नसीहत और को।
महरम नहीं उस हाल से, क़ाज़ी हुआ तो क्या हुआ॥
जोगी दिगंबर सेवड़ा, कपड़ा रँगे रंग लाल से।
वाक़िफ़ नहीं उस रंग से, कपड़ा रँगे से क्या हुआ॥
मंदिर-झरोखा-रावटी, गुल चमन में रहते सदा।
कहत कबीरा है सही हर दम में साहिब रम रहा॥
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