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बहस में दोनों को लुत्फ़ आता रहा

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बहस में दोनों को लुत्फ़ आता रहा

मुझ को दिल मैं दिल को समझाता रहा

उन की महफ़िल में दिल-ए-पुर-इज़्तिराब

एक शोला था जो थर्राता रहा

मौत के धोके में हम क्यूँ आ गए

ज़िंदगी का भी मज़ा जाता रहा

ना-शगुफ़्ता ही रही दिल की कली

मौसम-ए-गुल बार-हा आता रहा

जब से तुम ने दुश्मनी की इख़्तियार

ए'तिबार-ए-दोस्ती जाता रहा

अपनी ही ज़िद की दिल-ए-बेताब ने

उन के दर तक भी मैं समझाता रहा

जौर तो ऐ 'जोश' आख़िर जौर है

लुत्फ़ भी उन का सितम ढाता रहा

 

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Sootradhar