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दोराहा

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ये जीवन इक राह नहीं

इक दोराहा है

पहला रस्ता

बहुत सहल है

इस में कोई मोड़ नहीं है

ये रस्ता

इस दुनिया से बेजोड़ नहीं है

इस रस्ते पर मिलते हैं

रेतों के आँगन

इस रस्ते पर मिलते हैं

रिश्तों के बंधन

इस रस्ते पर चलने वाले

कहने को सब सुख पाते हैं

लेकिन

टुकड़े टुकड़े हो कर

सब रिश्तों में बट जाते हैं

अपने पल्ले कुछ नहीं बचता

बचती है

बे-नाम सी उलझन

बचता है

साँसों का ईंधन

जिस में उन की अपनी हर पहचान

और उन के सारे सपने

जल बुझते हैं

इस रस्ते पर चलने वाले

ख़ुद को खो कर जग पाते हैं

ऊपर ऊपर तो जीते हैं

अंदर अंदर मर जाते हैं

दूसरा रस्ता

बहुत कठिन है

इस रस्ते में

कोई किसी के साथ नहीं है

कोई सहारा देने वाला नहीं है

इस रस्ते में

धूप है

कोई छाँव नहीं है

जहाँ तसल्ली भीक में दे दे कोई किसी को

इस रस्ते में

ऐसा कोई गाँव नहीं है

ये उन लोगों का रस्ता है

जो ख़ुद अपने तक जाते हैं

अपने आप को जो पाते हैं

तुम इस रस्ते पर ही चलना

मुझे पता है

ये रस्ता आसान नहीं है

लेकिन मुझ को ये ग़म भी है

तुम को अब तक

क्यूँ अपनी पहचान नहीं है

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Sootradhar