![उगी गोरे भला पर बेंदी's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/sootradhar_post/gupt_jag.jpg)
उगी गोरे भला पर बेंदी!
एक छोटे दायरे में लालिमा इतनी बिथुरती,
बांध किसने दी।
नहा केसर के सरोवर में,
ज्यों गुलाबी चांद उग आया।
अनछुई-सी पाँखुरी रक्ताभ पाटल की,
रक्तिमा जिसकी, शिराओं के
सिहरते वेग में,
झनकार बनकर खो गई।
भुरहरे के लहकते रवि की
विभा ज्यों फूट निकली,
चीरती-सी कोर हलके पीत बादल की,
रात केशों में सिमटकर सो गई।
अरुन इंदीवर खिला, ईंगूर पराग भरा
सुनहले रूप के जल में
अलक्तक की बूंद
झिलमिल : स्फटिक के तल में।
Read More! Learn More!