![अंतराल का मौन's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/sootradhar_post/gupt_jag.jpg)
कवि की वाणी
कभी मौन नहीं रहती
भीतर-ही-भीतर शब्दमय
सृजन करती है
भले ही वह सुनाई न दे
लौकिक कानों में
वह अलौकिक स्वर ।
रचनाएँ उसी की छायाएँ हैं
रंग-रेखाएँ उसी की ज्योति से
निरन्तर उपजी हैं
फिर भी मनुष्य अपने को
निरीह समझता है ।
भरे-पूरे संसार में
अकारण दुःखी रहता है
खो जाता है जहाँ भी सन्तुलन
पैर डगमगाने लगते हैं
पँख होते हुए भी
उड़ नहीं पाता ।
Read More! Learn More!