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निश्वास

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निश्वास एक

डाली से ताज़े बकुल झर गए

निश्वास एक

भरे-भरे मेघों से

टप-टप-टप गिरी बूँदें बड़ी-बड़ी।

निश्वास एक

वृक्ष गदराया

उग आई श्वेत सेंदुरी जड़ें लाख।

निश्वास एक

लहरों में ज्वार उठा

और क्षितिज झुक आया।.

ये सब निश्वासें तेरी हैं,

मैं तो बदाल को देख-देख

पागल-सी फिरती हूँ,

तूफ़ानी लहरों संग

ऊपर को जाती हूँ,

जलबूँदों की सारी सँभाल

फहर-फहर फहराने वाली

धूप का आँचल पसार

ताज़े बकुल

उसमें समेटती हूँ।

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Sootradhar