जी लेती है वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम हमारा
बुझता है चराग़ आज सर-ए-शाम हमारा
ऐसा कोई गुमनाम ज़माने में न होगा
गुम हो वो नगीं जिस पे खुदे नाम हमारा
अव्वल तो न क़ासिद को रहे कू-ए-सनम याद
पहुँचे तो फ़रामोश हो पैग़ाम हमारा
हम गो कि हैं दीवाने मगर ग़र्क़-ए-यम-ए-अश्क
यूनान के मानिंद हुआ नाम हमारा
मय पाई न पीने को तो हम पी गए आँसू
अश्कों से भी साक़ी न भरा जाम हमारा
का'बे में भी वहशत की रही दस्त-दराज़ी
सद-चाक किया जामा-ए-एहराम हमारा
तिफ़्ली में थी इक दाया हैं अब चार के काँधे
आग़ाज़ से क्या ख़ूब है अंजाम हमारा
इक-आध रहे जिस्म-ए-मुशब्बक में तिरा तीर
ख़ाली न कभी सैद से हो दाम हमारा
काम औरों के जारी रहें नाकाम रहें हम
अब आप की सरकार में क्या काम हमारा
'नासिख़' कहें जल्द आ के कहें क़ासिद-ए-जानाँ
ख़त लीजिए दिलवाइए इनआ'म हमारा
Read More! Learn More!