![हुए रोने से मिरे दीदा-ए-बेदार सफ़ेद's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/sootradhar_post/imam.png)
हुए रोने से मिरे दीदा-ए-बेदार सफ़ेद
बल्कि अश्कों ने किया रंग-ए-शब-ए-तार सफ़ेद
आँखें ख़ुश-चश्मों की तुझ पर हुईं ऐ यार सफ़ेद
जिस तरह ज़ोफ़ से हो चेहरा-ए-बीमार सफ़ेद
हो गया ज़ोफ़ से मेरा बदन-ए-ज़ार सफ़ेद
नज़र आता है सनम सूरत-ए-ज़ुन्नार सफ़ेद
है फ़क़त आलम-ए-बाला से मदद मस्तों की
कौन जुज़ माह करे ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार सफ़ेद
गुल-एज़ारों की जो महफ़िल में गया वो गुल-ए-तर
हो गए ज़र्द जो दो-चार तो दो-चार सफ़ेद
तू वो यूसुफ़ है कि अब मुंतज़री में ऐ जान
मिस्ल-ए-याक़ूब हुई चश्म-ए-ख़रीदार सफ़ेद
दूद-ए-दाग़-ए-सर-ए-सौदा-ज़दा करता है सियाह
ऐ जुनूँ हम कभी रखते हैं जो दस्तार सफ़ेद
रौशन ऐ माह किया तू ने सियह-ख़ाना मिरा
तेरे जल्वे से हुए हैं दर-ओ-दीवार सफ़ेद
वाह क्या रंग-ए-हिना है कि तिरी चुटकी से
सुर्ख़ हो जाए अगर हो लब-ए-सोफ़ार सफ़ेद
शायद उन को नहीं अंदर की सियाही की ख़बर
कर रहे हैं जो मिरी क़ब्र को मे'मार सफ़ेद
उड़ गया रंग-ए-शक़ाइक़ तिरे आगे जिस दम
लोग समझे कि हुआ बर्फ़ से कोहसार सफ़ेद
नुक़रई पुट्ठे का डाला नहीं तू ने मूबाफ़
है सियह सारा बदन और दुम-ए-मार सफ़ेद
वस्फ़ लिक्खे जो तिरे गोरे बदन के मैं ने
हो गई ज़ाग़-ए-क़लम की वहीं मिंक़ार सफ़ेद
शम-ए-काफ़ूर से तश्बीह भला दूँ क्यूँ कर
है ब-रंग-ए-मह-ए-ताबाँ बदन-ए-यार सफ़ेद
बा'द इक उम्र के 'नासिख़' की जो अब आमद है
लखनऊ के हुए सब कूचा-ओ-बाज़ार सफ़ेद