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कब तक रहूँ मैं ख़ौफ़-ज़दा अपने आप से

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कब तक रहूँ मैं ख़ौफ़-ज़दा अपने आप से

इक दिन निकल न जाऊँ ज़रा अपने आप से

जिस की मुझे तलाश थी वो तो मुझी में था

क्यूँ आज तक मैं दूर रहा अपने आप से

दुनिया ने तुझ को मेरा मुख़ातब समझ लिया

महव-ए-सुख़न था मैं तो सदा अपने आप से

तुझ से वफ़ा न की तो किसी से वफ़ा न की

किस तरह इंतिक़ाम लिया अपने आप से

लौट आ दरून-ए-दिल से पुकारे कोई मुझे

दुनिया की आरज़ू में न जा अपने आप से

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Sootradhar