हर कदम पर नित नए साँचें में ढल जाते हैं लोग's image
0264

हर कदम पर नित नए साँचें में ढल जाते हैं लोग

ShareBookmarks

हर कदम पर नित नए साँचें में ढल जाते हैं लोग
देखते ही देखते कितने बदल जाते हैं लोग

किस लिए कीजिए किसी गुम-गश्ता जन्नत की तलाश
जब कि मिट्टी के खिलौनों से बहल जाते हैं लोग

कितने सादा दिल हैं अब भी सुन के आवाज़-ए-जरस
पेश ओ पस से बेख़बर घर से निकल जाते हैं लोग

अपने साए साए सर-नहुड़ाए आहिस्ता ख़िराम
जाने किस मंज़िल की जानिब आज कल जाते हैं लोग

‘शाइर’ उन की दोस्ती का अब भी दम भरते हैं आप
ठोकरें खा कर तो सुनते हैं सँभल जाते हैं लोग

 

Read More! Learn More!

Sootradhar