वस्ल की बनती हैं इन बातों से तदबीरें कहीं's image
0144

वस्ल की बनती हैं इन बातों से तदबीरें कहीं

ShareBookmarks

वस्ल की बनती हैं इन बातों से तदबीरें कहीं

आरज़ूओं से फिरा करती हैं तक़दीरें कहीं

बे-ज़बानी तर्जुमान-ए-शौक़ बेहद हो तो हो

वर्ना पेश-ए-यार काम आती हैं तक़रीरें कहीं

मिट रही हैं दिल से यादें रोज़गार-ए-ऐश की

अब नज़र काहे को आएँगी ये तस्वीरें कहीं

इल्तिफ़ात-ए-यार था इक ख़्वाब-ए-आग़ाज़-ए-वफ़ा

सच हुआ करती हैं इन ख़्वाबों की ताबीरें कहीं

तेरी बे-सब्री है 'हसरत' ख़ामकारी की दलील

गिर्या-ए-उश्शाक़ में होती हैं तासीरें कहीं

 

Read More! Learn More!

Sootradhar