आज शाख़ों पे परिंदे चुप हैं
आज मौसम उदास लगता है
दूर रहकर भी पास लगता है
तू मेरे साथ साथ लगता है
तुम्हारे पास जो मिट्टी सा एक लम्हा है
हमारे पास वो मोती है यादगारों में
वो मुझको देखके संजीदा समझता होगा
मैं कैसे इल्तिजा-ए-इश्क़ की नादानी करूँ
बड़ी अजीब है दश्त-ओ-चमन की ख़ामोशी
मैं कैसे बोलते पेड़ों की बाग़बानी करूँ
कभी ये ज़िद कि करूँ ख़ुद को हवाले उसके
कभी ये शौक़ कि उससे ही बदगुमानी करूँ
कभी ये ज़िद कि करूँ ख़ुद को हवाले उसके
कभी ये शौक़ कि उससे ही बदगुमानी करूँ
तुम्हारी नाक पे रहता है एक ऐसा नमक
ज़ुबां से छूते ही मिसरी में बदल जाता है
आपने वादा किया है वाह वाह
आपका कितना बड़ा एहसान है
झूठ की बाज़ीगरी की सामने
सच बहुत बेबस बड़ा हलकान है
हैं ईसाई हिंदू मुस्लिम सिक्ख सब
जो नदारद है वो हिंदुस्तान है
इल्मो-फ़न हो या कि फिर तहज़ीब हो
आजकल हर चीज़ की दूकान है
जितनी चीजें थीं वो सब महँगी हुईं
और जो सस्ता है वो इंसान है
ग़रीबों और मज़लूमों को तुम कमज़ोर मत समझो
परिंदे चोंच से मज़बूत कट्ठे फोड़ देते हैं
आज मौसम उदास लगता है
दूर रहकर भी पास लगता है
तू मेरे साथ साथ लगता है
तुम्हारे पास जो मिट्टी सा एक लम्हा है
हमारे पास वो मोती है यादगारों में
वो मुझको देखके संजीदा समझता होगा
मैं कैसे इल्तिजा-ए-इश्क़ की नादानी करूँ
बड़ी अजीब है दश्त-ओ-चमन की ख़ामोशी
मैं कैसे बोलते पेड़ों की बाग़बानी करूँ
कभी ये ज़िद कि करूँ ख़ुद को हवाले उसके
कभी ये शौक़ कि उससे ही बदगुमानी करूँ
कभी ये ज़िद कि करूँ ख़ुद को हवाले उसके
कभी ये शौक़ कि उससे ही बदगुमानी करूँ
तुम्हारी नाक पे रहता है एक ऐसा नमक
ज़ुबां से छूते ही मिसरी में बदल जाता है
आपने वादा किया है वाह वाह
आपका कितना बड़ा एहसान है
झूठ की बाज़ीगरी की सामने
सच बहुत बेबस बड़ा हलकान है
हैं ईसाई हिंदू मुस्लिम सिक्ख सब
जो नदारद है वो हिंदुस्तान है
इल्मो-फ़न हो या कि फिर तहज़ीब हो
आजकल हर चीज़ की दूकान है
जितनी चीजें थीं वो सब महँगी हुईं
और जो सस्ता है वो इंसान है
ग़रीबों और मज़लूमों को तुम कमज़ोर मत समझो
परिंदे चोंच से मज़बूत कट्ठे फोड़ देते हैं
Read More! Learn More!