कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है's image
0149

कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है

ShareBookmarks

कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है

ज़िंदगी एक नज़्म लगती है

बज़्म-ए-याराँ में रहता हूँ तन्हा

और तंहाई बज़्म लगती है

अपने साए पे पाँव रखता हूँ

छाँव छालों को नर्म लगती है

चाँद की नब्ज़ देखना उठ कर

रात की साँस गर्म लगती है

ये रिवायत कि दर्द महके रहें

दिल की देरीना रस्म लगती है

Read More! Learn More!

Sootradhar