
मैंने मन का मोल किया था, साँस नहीं तोली थी
प्राणों की वाणी बोली थी, डाक नहीं बोली थी
जो कुछ पाया मैंने तुमसे, जग को दिया सजाकर
जिसका जी चाहे, ले जाये अब यह ठोक बजाकर
खोली मैंने गाँठ हृदय की, लाज नहीं खोली थी
मिट-मिटकर मैंने जगवालों का पथ सहज बनाया
रँग-रँगकर अपने शोणित से रज को विरज बनाया
भू को किया सुवासित जलकर, जलन नहीं घोली थी
अनजाने ही छेड़ दिया था मैंने तार किसीका
मेरे गीतों में झंकृत है अब भी प्यार किसीका
धधक रही चेतना किसीकी पल भर को हो ली थी
मैंने मन का मोल किया था, साँस नहीं तोली थी
प्राणों की वाणी बोली थी, डाक नहीं बोली थी
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