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ग़ज़लों से चुनिंदा शेर

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अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए
जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए


जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा

 

है बहुत अँधियार अब सूरज निकलना चाहिए
जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए


बड़ा न छोटा कोई फ़र्क़ बस नज़र का है
सभी पे चलते समय एक सा कफ़न देखा

 

मेरे घर कोई ख़ुशी आती तो कैसे आती
उम्र-भर साथ रहा दर्द महाजन की तरह


ख़ुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की 
खिड़की खुली है फिर कोई उन के मकान की 

 
शराब कर के पिया उस ने ज़हर जीवन भर
हमारे शहर में 'नीरज' सा कोई मस्त न था


ज़िंदगी भर मैं जिसे देख कर इतराता रहा 
मेरा सब रूप वो मिट्टी का धरोहर निकला 
 
किसे पता है कि कब तक रहेगा ये मौसम 
रखा है बाँध के क्यूँ मन को रंग फिर यारो


वो दिल मे ही छिपा है, सब जानते हैं लेकिन
क्यूं भागते फ़िरते हैं, दायरो-हरम के पीछे
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Sootradhar