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नयी क्रांति

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कल मुझसे मेरी 'वे' बोलीं
"क्योंजी, एक बात बताओगे?"
"हाँ-हाँ, क्यों नहीं!" जरा मुझको
इसका रहस्य समझाओगे?
देखो, सन्‌ सत्तावन बीता,
सब-कुछ ठंडा, सब-कुछ रीता,
कहते थे लोग गदर होगा,
आदमी पुनः बंदर होगा।
पर मुन्ना तक भी डरा नहीं।
एक चूहा तक भी मरा नहीं!
पहले जैसी गद्दारी है,
पहले-सी चोरबजारी है,
दिन-दिन दूनी मक्कारी है,
यह भ्रांति कहो कब जाएगी?
अब क्रांति कहो कब आएगी?
यह भी क्या पूछी बात, प्रिये!
लाओ, कुछ आगे हाथ प्रिये!
हाँ, शनि मंगल पर आया है,
उसने ही प्रश्न सुझाया है।
तो सुनो, तुम्हें समझाता हूँ,
अक्कल का बटन दबाता हूँ,
पर्दा जो पड़ा उठाता हूँ,
हो गई क्रांति बतलाता हूँ।

होगए मूर्ख विद्वान, प्रिये!
गंजे बन गए महान प्रिये!
दल्लाल लगे कविता करने,
कवि लोग लगे पानी भरने,
तिकड़म का ओपन गेट प्रिये!
नेता से मुश्कल भेंट प्रिये!
मंत्री का मोटा पेट, प्रिये!
यह क्रांति नहीं तो क्या है जी?
यह गदर नहीं तो क्या है जी?
"लो लिख लो मेरी बातों को,
क्रांति के नए उत्पातों को।
अब नर स्वतंत्र, नारी स्वतंत्र,
शादी स्वतंत्र, यारी स्वतंत्र,
कपड़े की हर धारी स्वतंत्र,
घर-घर में फैला प्रजातंत्र।
पति बेचारे का ह्रास हुआ।
क्या खूब कोढ़ बिल पास हुआ!
अब हर घर की खाई समाप्त,
रुपया, आना, पाई समाप्त ।
पिछला जो कुछ था झूठा है,
अगला ही सिर्फ अनूठा है,
अणु फैल-फैलकर फूटा है,
दसखत की जगह अंगूठा है।
यह क्रांति नहीं तो क्या है जी?
यह गदर नहीं तो क्या है जी?"
"आदमी कहीं मरता है, जी,
बंदूकों से तलवारों से?
आदमी कहीं डरता है, जी,
गोली-गोलों की मारों से?
बढ़ते जाते ये (बन) मानुष,
युद्धों से कब घबराते हैं?

खुद को ही स्वयं मिटाने को,
हथियार बनाए जाते हैं।
इसलिए नहीं अब दुश्मन को
सम्मुख ललकारा जाता है,
बस, शीतयुद्ध में दूर-दूर
से ही फटकारा जाता है,
मुस्काकर फाँसा जाता है,
हॅंसकर चुमकारा जाता है,
पीछे से घोंपा जाता है,
मिल करके मारा जाता है,
यह क्रांति नहीं तो क्या है, जी?
यह गदर नहीं तो क्या है, जी?"
"अभिनेत्री बनतीं सीता जी,
अखबार बने हैं गीता जी।
चेले गुरुओं को डांट रहे,
अंधे खैरातें बंट रहे,
महलों में कुत्ते रोते हैं,
अफसर दफ्तर में सोते हैं।
भगवान अजायबघर में हैं,
पंडे बैठे मंदिर में हैं।
गीदड़ कुर्सी पा जाते हैं,
बगुले पाते हैं वोट यहाँ,
कौए गिनते हैं नोट यहाँ।
उल्लू चिड़ियों का राजा है,
भोंपू ही बढ़िया बाजा है।
गदही ही श्रेष्ठ गायिका है।
लायक अब सिर्फ 'लायका' है।
यह क्रांति नहीं तो क्या है, जी?
यह गदर नहीं तो क्या है, जी?"

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Sootradhar