
अजी वाह! क्या बात तुम्हारी,
तुम हो पानी के ब्योपारी
खेल तुम्हारा तुम्हीं खिलाड़ी,
बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी।
सारा पानी चूस रहे हो,
नदी समन्दर लूट रहे हो।
गंगा-यमुना की छाती पर,
कंकड़-पत्थर कूट रहे हो।
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अजी वाह! क्या बात तुम्हारी,
तुम हो पानी के ब्योपारी
खेल तुम्हारा तुम्हीं खिलाड़ी,
बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी।
सारा पानी चूस रहे हो,
नदी समन्दर लूट रहे हो।
गंगा-यमुना की छाती पर,
कंकड़-पत्थर कूट रहे हो।