शेष's image
0342

शेष

ShareBookmarks

शेष
कई बार लगता है
मैं ही रह गया हूँ अबीता पृष्ठ
बाकी पृष्ठों पर
जम गई है धूल।

धूल के बिखरे कणों में
रह गए हैं नाम
कई बार लगता है
एक मैं ही रह गया हूँ
अपरिचित नाम।

इतने परिचय हैं
और इतने सम्बंध
इतनी आंखें हैं
और इतना फैलाव
पर बार-बार लगता है
मैं ही रह गया हुं
सिकुडा हुआ दिन।

बेहिसाब चेहरे हैं
बेहिसाब धंधे
और उतने ही देखने वाले दृष्टि के अंधे
जिन्होंने नहीं देखा है
देखते हुए
उस शेष को
उस एकांत शेष को
जो मुझे पहचानता है
पहचानते हुए छोड देता है
समय के अंतरालों में...

 

Read More! Learn More!

Sootradhar