In the twenty-first century, Fahmi Badauni Sahib is preparing the same land on which new crops of Ghazal will grow. Born on 4 January 1952 in Bisauli town of Badaun district. Necessity brought him to the job of an accountant at a young age. When luck turned his back on his job, his interest in maths and science opened the doors to coaching classes.
Fahmi sahib has invented such a color in poetry which looks like a seal in each of his sher. Generally so few words are used in Fahmi Sahab's Sher that the responsibility of each word increases.
इक्कीसवीं सदी में फ़हमी बदायूनी साहब वही ज़मीन तय्यार कर रहे हैं जिनपर ग़ज़ल की नई फस्लें लहलहाऐंगी। 4 जनवरी 1952 को बदायूं ज़िले के बिसौली क़स्बे में जन्मे । ज़रूरत कम-उम्री में लेखपाल की नौकरी की तरफ़ ले आई। जब क़िस्मत ने नौकरी से मुंह मोड़ लिया तो मैथ और साइंस की दिलचस्पियों ने कोचिंग क्लासेस के दरवाज़े खोल दिए।
फ़हमी साहब ने शायरी में एक ऐसा रंग ईजाद किया है जो उनके हर शेर में मोहर की तरह नज़र आता है। फ़हमी साहब के शेर में आम तौर पर इतने कम अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल होता है कि हर लफ़्ज़ की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है।