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ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं

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ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं

हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं

बे-अदब गिर्या-ए-महरूमी-ए-दीदार नहीं

वर्ना कुछ दर के सिवा हासिल-ए-दीवार नहीं

आसमाँ भी तिरे कूचे की ज़मीं है लेकिन

वो ज़मीं जिस पे तिरा साया-ए-दीवार नहीं

हाए दुनिया वो तिरी सुरमा-तक़ाज़ा आँखें

क्या मिरी ख़ाक का ज़र्रा कोई बेकार नहीं

 

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Sootradhar