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आँख उठाई ही थी कि खाई चोट

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आँख उठाई ही थी कि खाई चोट

बच गई आँख दिल पे आई चोट

दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर क्या हो

जानता कौन है पराई चोट

आई तन्हा न ख़ाना-ए-दिल में

दर्द को अपने साथ लाई चोट

तेग़ थी हाथ में न ख़ंजर था

उस ने क्या जाने क्या लगाई चोट

यूँ न क़ातिल को जब यक़ीं आया

हम ने दिल खोल कर दिखाई चोट

और क्या करते हम बला-कश-ए-ग़म

जो पड़ी दिल पे वो उठाई चोट

कहीं छुपती भी है लगी दिल की

लाख 'फ़ानी' ने गो छुपाई चोट

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Sootradhar