![मूलमंत्र's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/sootradhar_post/%E0%A4%B5%E0%A4%B0_%E0%A4%A4%E0%A4%AE_%E0%A4%AC%E0%A4%A2_%E0%A4%9A%E0%A4%B2_%E0%A4%A7%E0%A4%B0_%E0%A4%A4%E0%A4%AE_%E0%A4%AC%E0%A4%A2_%E0%A4%9A%E0%A4%B2.jpg)
केवल मन के चाहे से ही
मनचाही होती नहीं किसी की।
बिना चले कब कहाँ हुई है
मंज़िल पूरी यहाँ किसी की।।
पर्वत की चोटी छूने को
पर्वत पर चढ़ना पड़ता है।
सागर से मोती लाने को
गोता खाना ही पड़ता है।।
उद्यम किए बिना तो चींटी
भी अपना घर बना न पाती।
उद्यम किए बिना न सिंह को
भी अपना शिकार मिल पाता।।
इच्छा पूरी होती तब, जब
उसके साथ जुड़ा हो उद्यम।
प्राप्त सफलता करने का है,
'मूल मंत्र' उद्योग परिश्रम।।
Read More! Learn More!