![झरिलागै महलिया, गगन घहराय's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/sootradhar_post/dharam_das.png)
झरिलागै महलिया, गगन घहराय।
खन गरजै, खन बिजरी चमकै, लहर उठै सोभा बरनि न जाय॥
सुन्न महल से अमरित बरसै, प्रेम अनंद होइ साध नहाय॥
खुली किवरिया मिटी अंधियरिया, धन सतगुरु जिन दिया है लखाय॥
'धरमदास बिनवै कर जोरी, सतगुरु चरन मैं रहत समाय॥
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