
॥बिरहा॥
अलप वयस दुख भारी कइसे हम खेलीब हे।
सखिया! मोरा भेल बिछाह धिरज नहिं रहल हे॥1॥
कोई न मिलल अवलंब काहि गोहरायब हे।
सखिया! रैन-दिवस दुख रोई कहाँ सुख पायब हे॥2॥
सपना भेल सुख सेज दरद तब व्याकुल हे।
सखिया! रोई-रोई कजरा दहाय कमल कुम्हलायल हे॥3॥
कोईन मिलल हित मोरा बिरह से व्याकुल हे।
सखिया! तजलौं नैहर के आस, पिया संग जायब हे॥4॥
धर्मदास नहिं चैन दरस दे बिछुरि हे।
सखिया! सुधि न रहल मोरा, भींजल पट चुनरी हे॥5॥
Read More! Learn More!