
रात जब सो रही है...
गहरी नींद की गोद में...
तारों से छुप-छुपाकर...
चाँद की आत्मा कर जाती है प्रवेश
तब नदी की देह में...
सतह पर बैठकर पहरा देता है
जल... उन मिलन के क्षणों का
सूर्य देता है अर्घ्य किरणों से
पवित्र नदी का ध्यान भंग करने
उनके द्वारा की गई...
सामूहिक प्रार्थनाओं का सच,
केवल सुबह को पता होता है।
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